how the honest King leaved the Earth and The Kalyug came in the Earth.







The last King's Parikshit had made king of Hastinapur  region where the old King's Yudhister famous all world for truth.He is symbol of Dharma in the earth on that time ,his grand son was Parikshit who had made
a last king of Hastinapur where he was try to safe India's culture and their moral in the Earth, when the Pandava was going to left Hastinapur then the King 's Yudhister had made a king of grand son Parikshit.
The king Parikshit had made a first person in the world ,who heard the first Shree MadBhagwat Geeta
from the great saint of Sukhdev after that he had left the Earth.


एक दिन राजा परीक्षित शिकार खेलने गए।
मृग का पीछा करते-करते वे बहुत थक गए।
प्यास लगी तो वे शमीक ऋषि के आश्रम में गए।

शमीक ऋषि ध्यान लगाकर बैठे थे।
परीक्षित ने सोचा कि ये मेरी बात नहीं सुन रहे।
भूख प्यास के मारे राजा अपना विवेक खो बैठा।
और उसने एक छड़ी से एक मृत सर्प को शमीक ऋषि के गले में डाल दिया।
और राजा चला गया।

शमीक ऋषि की समाधि फिर भी भंग नहीं हुई।

शमीक ऋषि का पुत्र श्रृंगी वहां पहुंचा।
उसने देखाकि किसी ने मृत सर्प पिता के गले में डाल दिया है।
तो उन्हें बड़ा क्रोध आया। उन्होंने क्रोध में आकर श्राप दे दिया कि जिस किसी ने मेरे पिताजी के गले में मृत सर्प डाला है आज से ठीक सातवे दिन सर्पराज तक्षक उसको डंस लेंगे।

जब ऋषि शमीक की तपस्या पूर्ण हुई तब उन्हें पूरी बात श्रृंगी ने बताई।

ऋषि ने ध्यान लगाया। वे समझ गए कि राजा परीक्षित ने कलयुग के प्रभाव में आकर यह किया है।
अनजाने में उनसे भूल हो गई।
मेरे पुत्र ने छोटी सी भूल का उन्हें इतना बड़ा दंड दे दिया।
यह तो अच्छा नहीं हुआ।

अगर राजा परीक्षित न रहें तो पृथ्वी पर अराजकता व्याप्त हो जाएगी।
यह सोच ऋषि चिंतित हो गए।

इधर राजा परीक्षित ने जब मुकुट उतारा तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ।
राजा परीक्षित को जब शाप के बारेमें ज्ञान हुआ तो उन्होंने इसे प्रभु आज्ञा मानकर शिरोधार्य किया और तुरंत राजपाट छोड़ दिया।
उन्होंने निश्चय किया कि अब जो भी थोड़े दिन बचे हैं, उन दिनों में वे भगवान की भक्ति करेंगे।
ऐसा विचार कर परीक्षित राजमहल छोड़कर गंगा के तट पर आकर विराज गए और संकल्प लिया कि मरणकाल तक वे निराहार रहकर तपस्या करेंगे।

ऋषि-मुनियों को जब यह पता चला कि राजा परीक्षित श्रापित हो चुके हैं तो वे राजा के समीप उनके आश्रम पहुंचे।

उनमें मुख्य थे अत्री, वशिष्ठ, च्यवन अरिष्ठनेमी, अंगीरा, पाराशर, विश्वामित्र, परशुराम, भृगु, भारद्वाज, गौतम, पिप्पलाद, मैत्रेय, अगस्त्य, और वेदव्यास।

नारदजी भी वहां पहुंच गए।

राजा ने सबको प्रणाम किया और सारी बात बता दी व कहा कि अब मैं इसी प्रकार से अपना शेष जीवन-यापन करूंगा।

तब सभी ऋषि-मुनियों ने विचार किया कि जब तक आप जीवित हैं तब तक वे सब लोग यहीं विराजेंगे और धर्मोपदेष करेंगे।

ऋषियों ने राजा को भांति- भांति का उपदेषदेना आरंभ किया और संयोग से शुकदेवजी वहां उपस्थित हो गए।

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