What is mystery between Hindu lord Shiva and Hari ?.



The Lord self say i am  only one in whole universe but i have showing in different face and personality where
Many different people like the god in different shape So the god make a various shape for his sons who remembering all time their god but these wise people be careful for that we should not make a little think for
other god and we are not fight for this topic.

This story help you to understand why many people called the god with different name but those supreme
power who control all thing listen all voice in different name but he is only come for help you anywhere in this
whole Universe.Many religion holy books self give this message that he is only thing and he lead your soul when you are not wake up from long sleep then you are not listen his voice.

Today,many saint who belive different god and they are become a ego of this wrong think ,i am superior
from other person but these person living in darkness in the world.



शिव निन्दा करने वाले वैष्णव और विष्णु की बुराई करने वाले शैव इस कहानी को पढकर अपनी राय बदले और इस कहानी का आनन्द ले ।ये कहानी 'कल्याण' पत्रिका से ली गई हैं ।एक समय की बात है की महर्षि गौतम ने भगवान शंकर को खाने पर आमंत्रित किया ।

उनके इस आग्रह को शिव जी ने स्वीकार कर लिया उनके साथ चलने के लिए भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी भी तैयार हो गए ।

महर्षि के आश्रम मे पहुच कर तीनो वहाँ बैठ गए ।

भोले बाबा और श्री हरी विष्णु एक शय्या पर लेटकर बहुत देर तक प्रेमालाप करते रहे।
इसके बाद उन दोनो ने आश्रम के पास ही एक तालाब मे नहाने चले गए वहा पर भी वे बहुत देर तक जलक्रीडा करते रहे।

भगवान शिव जी ने पानी मे खडे श्री हरी पर जल की कोमल बुन्दो से प्रहार किया इस प्रहार को विष्णु जी सहन ना कर सके और अपनी आँखें मुँद ली।

इस पर भी भगवान शिव जी को संतोष नही मिला और वे झट से कुदकर वे विष्णु जी के कंधे पर चढ गए और भगवान विष्णु को कभी पानी मे दबा देते तो कभी पानी के उपर ले आते इस प्रकार बार-बार तंग करने पर विष्णु जी ने भी अब शिव जी को पानी मे दे मारा ।

दोनो के इस प्रकार के खेल को देखकर देवता गण हर्षित हो रहे थे और दोनो की लीला को देखकर मन ही मन उन्हे प्रणाम कर रहे थे।

उसी समय नारद जी वहाँ से गुजर रहे थे ये लीला देखकर वे सुंदर वीणा बजाने लगे और गाना भी गाने लगे उनके साथ शिव जी भी भीगे शरीर मे ही सुर से सुर मिलाने लगे फिर तो विष्णु जी भी पानी से बाहर आकर म्रदंग बजाने लगे ।

जब ब्रह्मा जी ने स्वर सुना तो फिर वे भी मस्ती के इस क्रम मे शामिल हो गए।

बची-खुची जो भी कसर थी वो श्री हनुमान जी ने पुरी कर दी जब वे राग आलापने लगे तो सभी चुप हो कर शान्ति से उनका संगीत सुनने लगे ।

सभी देव, नाग, किन्नर, गन्धर्व आदि उस अलौकिक लीला को देख रहे थे और अपनी आँखें धन्य कर रहे थे।

उधर महर्षि गौतम ये सोचकर परेशान थे कि स्नान को गए मेरे पुज्य अतिथि गण अब तक क्यो नही आए उन्हे चिन्ता हो रही थी और इधर तो भगवान को धमाचोकड़ी मचाने से फुर्सत कहा।

सब एक दुसरे के गाने बजाने मे इतने मगन थे किउन्हे ये भी याद न रहा कि वे महर्षि गौतम के अतिथि बन यहाँ आए हैं ।

फिर महर्षि गौतम ने बड़ी ही मुश्किल से उन्हे भोजन के लिए मनाया आश्रम लेकर आए और भोजन परोसा ।

तीनो ने भोजन करना शुरु किया ।

इसके बाद हनुमान जी ने फिर संगीत गाना शुरु कर दिया।
सुर मे मस्त शिव जी ने अपने एक पैर को हनुमान जी के हाथों पर और दुसरे पैर को हनुमान जी सीने, पेट, नाक,आँख आदि अंगो का स्पर्श कर वही लेट गये।

यह देखकर भगवान विष्णु ने हनुमान से कहा - "हनुमान तुम बहुत ही भाग्यशाली हो जो शिव जी के चरण तुम्हारे शरीर को स्पर्श कर रहे है ।
जिस चरणो की छाव पाने के लिए सभी देव-दानव आदि लालायीत रहते है उन चरनो की छाव सहज ही तुम्हे प्राप्त हो गये है ।

अनेक साधु-संत और कई साधक जन्मो तक तपस्या और साधना करते है फिर भी उन्हे ये शौभाग्य प्राप्त नही होता।
मैंने भी सहस्त्र कमलो से इनकी अर्चना की थी पर ये सुख मुझे भी न मिला।
आज मुझे तुमसे इर्श्या का अनुभव हो रहा हैं ।

सभी लोको मे यह बात सब जानते है कि नारायण भगवान शंकर के परम प्रितीभाजन है पर यह देखकर मुझे संदेह-सा हो रहा है।"

यह सुन कर भगवान शिव शंकर बोल उठे- "हे नारायण ये क्या कह रहे है आप तो मुझे प्राणो से भी प्यारे है। औरो की क्या बात है देवी पार्वती भी आपसे अधिक प्रिय नही है मेरे लिए आप तो जानते ही है।"

भगवती पार्वती जी उधर कैलाश मे ये सोचकर परेशान हो रही थीं कि आज कैलाशपतिशिव जी कहा चले गये कही मुझे से रुठकर तो नही चले गये।

यह सोचकर देवी पार्वती शिव जी को ढुढते- ढुढते आश्रम पहुचे और पता चला कि मेरे स्वामी शिव जी, विष्णु जी और ब्रह्मा जी महर्षि गौतम के यहा मेहमानी मे गये हैं ।

वे भी महर्षि गौतम का परोसा खाना खाया ।
इसके बाद विनोदवश देवी पार्वती शिव जी के वेश-भुशा को लेकर हंसी उड़ाई और बहुत सी ऐसी बाते कही जो अक्सर पति पत्नि प्रेम से एक दुसरे को कुछ भला बुरा कहते रहते हैं।

ये बात सुनकर भगवान विष्णु जी से रहा नही गया और वे बोल उठे- "देवी! ये आपक्या कह रहे है।
मुझसे आपकी बात सही नही जा रही।
जहाँ शिव निन्दा होती है वहाँ मैं प्राण धारण कर नही रह सकता।"

इतना कहकर श्री हरी ने अपने नाखुनो से अपने ही सिर को फाड़ने लगे ।
यह देखकर सभी ने उन्हे रोकने की कोशिश की पर वे नही मान रहे थे फिर शिव जी के अनुरोध पर वे रुके।


इनके इस प्रेम को देखकर हमे ये समझना चाहिए कि ये दोनो किसी भी प्रकार से अलग नही है फिर हम किस कारण विवाद करते है किसी को श्रेष्ठ और किसी को निम्न कहते है । क्या ऐसा सोचना हमारी मुर्खता नही...

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