All Gopiya & live thing weeping when Lord Krishna had gone Mathura with Akrura.




Now,Shrimad Bhagwat dasam Skand describe how these Gopiya of Vrindavan and self Vrindavan princess Radha have become sorrowful when she had news that the Mathura commander Akrura came here for take the Gokul prince
Krishna then she has decide that she wold be prevent the way of Krishna where Lord Krishna could not go there but she could not done this work because she was truth loved Lord Krishna So she knew well what is the purpose of Lord Krishna Life.

Today.Many Saint of India and other country like to sing the virtue of Lord Radha-Krishna,and these Saint
enjoying these Satsang ,they spread to all world where Many person gain more benefit to sit this Lord programme.ShriMad Bhagwat describe how the cow and other animal loved their Lord Krishna and they also weeping with these Gopiya in Vrindavan.

भागवत दशम स्कंध:- श्रीकृष्ण कथा-भाग-64श्रीकृष्ण-बलराम का मथुरा गमन (4)ग्रामजनों का कृष्ण प्रेम और कृष्ण विरह का दुख देखकर अक्रूरजी की आंखोंसेभी आंसू बहने लग।

गायें भी रो रही थीं।
कोई गोपी रथ के पीछे दोड़ रह थी, तो कोई मूर्छित होकर गिर गई।

श्रीकृष्ण ने अक्रूरजी से कहा-ये प्रेम के छलकते हुए हृदय वाले ग्रामजन मुझे आगे बढऩे ही नहीं देंगे।
सो रथ जरा जल्दी चलाओ काका।

अधीरता से यशोदा रथ के पीछे दौडऩे लगीं।

प्रभु ने दौड़ती हुई अपनी माता का देखा, तो रथ रूकवाया।

माता ने पुत्र की नजर उतारी, आरती की, बेटे तेरे जाने से मुझे बड़ा दुख हो रहा है।
मैं तो चाहती थी कि मेरी आंखोंसे कभी दूर न होने पाए किन्तु मैंने केवल अपने ही लिए तुझे प्यार नहीं किया।

मैं प्रार्थना करती हूं कि जहां भी रहे, सुखी रहे।

कन्हैया, मथुरा में तू यह भूल जाना कि मैंने तुझे कभी मूसल से बांधा था।

कन्हैया बोलते हैं मां सब कुछ भूल सकता हूं किन्तु तेरे बंधनोंको कैसे भूल जाऊं।

रथ आगे बढऩे लगा।

गोपियां पीछे दौडऩे लगीं।
उन्होंने कन्हैया की आरती उतारना चाही तो रथ फिर से रोका गया।

श्रीकृष्ण गोपियों से कहने लगे- दुष्टों की हत्या, दैत्यों का संहार तो मेरे जन्म का गौण प्रयोजन है।
मेरे अवतार का मुख्य प्रयोजन है- गोकुल में प्रेमलीला करना।

मेरा एक स्वरूप यहां तुम्हारे पास रहेगा
और दूसरा स्वरूप वहां मथुरा में।

पहले मात्र यशोदा के घर ही एक कन्हैया था।
अब हर गोपी के घर में एक-एक कृष्ण है।
कृष्ण ने सभी गोपियों के हृदय मे प्रवेश किया।

यह अंतरंग का संयोग है और बहिरंग का वियोग है।

प्रत्येक गोपी अनुभव कर रही है कि श्रीकृष्ण उनके पास ही बसे हुए हैं मथुरा नहीं गए।

श्रीकृष्ण को लेकर रथ चला गया और गोपियां चित्र लिखित- सी खड़ी-खड़ी देखती रहीं।

कन्हैया ने गोकुल का त्याग नहीं किया है वह तो हरेक गोपी केहृदय में बसा हुआ है।

भगवान् ने वचन दिया था कि वियोग के बिना तन्मयता नहीं आ सकती।

बिना वियोग के ध्यान में एकाग्रता नहीं आ पाती और साक्षात्कार नहीं होता।

ये कृष्ण हैं, अद्भुत हैं।
कृष्ण की लीला अद्भुत है, वे जानते थे कि वृन्दावन का समय हो गया है।
अब लीला मथुरा में करना है, लीला को मथुरा ले जाना है,सो एक क्षण भी उन्होंने बर्बाद नहीं किया और वृन्दावन छोड़कर मथुरा की ओर चले गए।

इधर भगवान् श्रीकृष्ण भी बलरामजी और अक्रूरजी के साथ वायु के समान वेग वाले रथ पर सवार होकर पापनाषिनी यमुनाजी के किनारे जा पहुंचे।

वहां उन लोगों ने हाथ-मुंह धोकर यमुनाजी का मरकतमणि के समान नीला और अमृत के समान मीठा जल पिया।
इसकेबाद बलरामजी के साथ भगवान् वृक्षों के झुरमुट में खड़े रथ पर सवार हो गए।

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