Shree Krishna Katha part's-15,Fight with devil Vatsasur.
एक ओर गोवर्धन पर्वत था और दूसरी ओर यमुना कल-कल करती बह रह थी।
झुंड -के-झुंड भौंरे फूलों पर मँडरा रहे थे ,उस मनोहर वृन्दावन में कृष्ण बछड़ों को चराने के लिये समुत्सुक होकर हलधर तथा ग्वालबालों के साथ श़ृङीवाद्य , मुरली और बेंत धारण करके विचरने लगे ।
कृष्ण रोज ग्वाल- बालों के साथ गाय चराते और खेलते थे।
पूरे दिन वन में ही रहते थे।
सन्ध्या होने पर गायों के साथ पुनः घर लौटते थे।
कृष्ण के शरीरकी कान्ति नेत्रों को मोह लेने वाली थी ।
एक बार की बात है दोपहर के पूर्व का समय था।
कृष्ण कदंब के वृक्ष के नीचे ग्वाल-बालों के साथ खेल रहे थे।
चारों ओर सन्नाटा था।
सहसा श्रीकृष्ण की दृष्टि सामने चरते हुए बछ्ड़ों की ओर गई ।
उन बछ्ड़ों के मध्य वे एक अद्भुत बछ्ड़े को देखकर चौंक उठे।
दरअसल, वह कोई बछ्ड़ा नहीं था, वह एक दैत्य था जो बछ्ड़े का रूप धारण करके बछ्ड़ों में जा मिला था।
उसने कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिये गाय के बछ्ड़े का रूप धारण किया था, इसीलिए लोग उसे वत्सासुर कहते थे।
वह वत्सासुर बड़े वेग से अपनी पूँछ को इधर -उधर घुमा रहा था ।
बछड़ों के मध्य विचरता हुआ वह अपनी गरदन को थोड़ी तिरछी करके पीछे की ओर देख लेता था और अवसर की प्रतीक्षा में था ।
उसके इस प्रकार देखने के अभिप्राय को कृष्ण ने भॉंप लिया ।
कृष्ण वत्सासुर को पहचानते ही उसकी ओर अकेले ही चल पड़े।
कृष्ण ने उसके पास पहुंचकर उसकी गरदन पकड़ ली।
कृष्ण ने उसके पेट मेंइतनी ज़ोर से घूंसा मारा कि उसकी जिह्वा निकल आई।
फिर तो उसकी पिछली टॉंगें पकड़कर कृष्ण उसे वेग पूर्वक बारं बार घुमाने लगे।
घुमाते समय ही उसके प्राण पखेरु उड़ गये, तब कृष्ण ने उसे वृक्ष पर दे मारा ।
दैत्य वत्सासुर अपने पतन वेग से वृक्षों को छिन्न -भिन्न करके उस वन प्रदेश की शोभा नष्ट करता हुआ धराशायी हो गया।
वह अपने असली रूप में प्रकट होकर धरती पर गिर पड़ा।
सभी ग्वाल-बाल उस भयानक राक्षस को देखकर विस्मित हो गए।
वे श्रीकृष्ण की प्रशंसा करने लगे और ‘जय कन्हैया’ के नारे लगाने लगे।
तब आकाश में देवता संगठित होकर आये और हर्षपूर्वक पुष्प -समूहों की वृष्टि करने लगे।
तुम्हारे मस्तक के ऊपर यह अतिशय सुगन्धयुक्त कुसुमावली कहॉं से गिर रही है ?’
ग्वालबालों के यों पूछने पर कृष्ण ने लीलापूर्वक उत्तर दिया- ‘ऐसा प्रतीत होता है कि वत्सासुर के शरीर को वेग पूर्वक फेंकने से उसके साथ -ही -साथ कुछ पुष्प वृक्षमण्डल से ऊपर को चले गये थे, वे ही अब धीरे-धीरे गिर रहे हैं ’
सन्ध्या समय जब वह लौटकर घर गए, तो ग्वालबालों ने पूरी वृन्दावन में भी इस घटना को फैला दिया।
कथा आगे भी जारी रहेगी क्रमशः..