Life change to time to time So we need to rectify Social Rule.



भीष्म ने कहा- ये आप क्या कह रहे हैं भगवन मैंने तो संबंधों का निर्वाह किया था।
मैंने तो शपथ ली थी प्रतिज्ञा का पालन करना तो राजपुरूष का कर्तव्य है।

श्रीकृष्ण ने जो उत्तर दिया भागवत का संदेश यहीं से आरंभ हो रहा है।
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श्रीकृष्ण भीष्म से कह रहे हैं -भीष्म याद रखिए जीवन में अपनी शपथ, अपने संकल्प, अपने निर्णय व अपनी परंपरा का पुनर्मूल्यांकन करते रहना चाहिए।

जब आपने हस्तिनापुर की राजगादी की रक्षा की शपथ ली थी तब चित्रांगद और विचित्रवीर्य बैठे थे राजगादी पर।
और जब द्रोपदी का अपमान किया गया उस समय दुर्योधन जैसा दुष्ट बैठा था राजगादी पर।

श्रीकृष्ण का यह संवाद हमारे लिए संकेत है।
वर्षों पुरानी हमारे घर की कोई परंपरा हो, हमारी जीवन की परंपरा व्यवस्थाओं की परंपराएं हो तो समय- समय पर उनका पुनर्मूल्यांकन करते रहिए।

पांडव अपने सारे निर्णयों की पुष्टि भगवान से करवाते थे और भीष्म यहीं पर चूक गए थे।

श्रीकृष्ण ने कहा-जीवन संतुलन का नाम है।
जो लोग जीवन को अति से जिएंगे वे एक दिन परेशान हो जाएंगे।

यह सुनकर भीष्म ने कहा इतना बड़ा कुरुवंश था मैं कैसे संबंध निभाता था?
मैं ही जानता था।

श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले- आपने हस्तिनापुर की राजगादी को सुरक्षित रखा लेकिन आसपास के वातावरण को रूपांतरित नहीं किया ये आपकी बड़ी भूल थी।

दुर्योधन भ्रष्ट बन गया, ये आपकी भूल है।

भीष्म ने नजर नीची की।

भगवान ने भीष्म को जो संदेश दिया हमारे भी काम आएगा।

भीष्म ने कहा मैं प्रणाम करता हूं और भीष्म ने आभार व्यक्त किया।

उन्होनें फिर धर्मराज को उपदेश दिया।
और फिर परमधर्म बताया, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना ही परमधर्म है।

अब भीष्म प्राण त्यागने की तैयारी में हैं।

महाभारत के युद्ध के दौरान भीष्म ने श्रीकृष्ण से निवेदन किया था कि जिस दिन मेरी मृत्यु हो, आप अवश्य उपस्थित रहना।
श्रीकृष्ण ने अपना वचन निभाया।

जब महात्मा भीष्म ने प्राणों का उत्सर्ग किया तो भगवान भी भावुक हो गए।

सोचिए क्या दिव्य मृत्यु रही होगी कि जिसकी मृत्यु पर भगवान आंसू बहाने लगे।
ऐसी भीष्म की मृत्यु हुई।

प्रथम स्कंध में भीष्म का चरित्र भागवत के ग्रंथकार सुना रहे हैं।

भीष्म का गमन हुआ।
भीष्म को भगवान ने विदा किया।

भगवान श्रीकृष्ण महाभारत को समाप्त करके जा रहे हैं।
भगवान ने कहा मेरा समय हुआ, मुझे द्वारिका जाना है।
भगवान द्वारिका जाने लगे और पांडवों से कहा कि- देखो अब तुम लोग अपना जीवन आरंभ करना।

युधिष्ठिर का राजतिलक करके श्रीकृष्ण द्वारिका गए।

वहां की जनता ने उनकी रथ यात्रा का दर्शन किया।

यह वर्ण प्रथम स्कंध के 10 तथा 11 वें अध्याय में आता है।
 

 बाहरवें अध्याय में परीक्षित के जन्म की कथा है।

उत्तरा ने बालक को जन्म दिया और वह बालक जन्म लेते से ही उस चतुर्भुज रूप को खोजने लगा जिसे उसने अपनी माता के गर्भ में देखा था।

परीक्षित भाग्यशाली था कि उसको माता के गर्भ में ही भगवान के दर्शन हुए।
यही कारण है कि वह उत्तम श्रोता है।

युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों से पूछा कि यह बालक कैसा होगा?

ब्राह्मणों ने कहा कि वैसे तो सभी ग्रह दिव्य हैं किंतु मृत्यु स्थान में कुछ त्रुटी है।
इसकी मृत्यु सर्प दंश से होगी।

यह सुनकर धर्मराज को दु:ख हुआ कि मेरे वंश का पुत्र सर्पदंश से मरेगा।

पर ब्राह्मणों ने युधिष्ठिर को आश्वस्त किया कि जो कुछ भी होगा उसी से इस बालक को सदगति मिलेगी।


The part of this story has taken by the Mahabharata .this battle had  going in Kurukshetra field at Hariyana
in India.This historical field made a divine field where the world lord Shree Krishna had given a divine knowledge,Now it is know such a shreemad Bhagwat Geeta in the whole world.The Lord shree Krishna
try to understand of pupil's Arjuna that this whole world is made for some time where All life get a birth
and after some time they are leave the earth.

The Lord shree Krishna had been telling the mystery of the universe for humane develop and they are choose
right way where they meet with own super soul.Really The lord Geeta such as divine knowledge sea where
All life get a divine knowledge,The lord Geeta only taking about whole world not one country So Many
people who belong to any country who also touch this Super power and rectify direction own life in the Earth.Many people continue sing a divine song " Radhe Krishna..Jai Krishna.Hare Murari" which is
lovely song regard to many youth.

Many world Saints come to India only to seen "Radha Krishna" temple at Mathura in UP. what is power
which attract to all people who come to India one sight get the jhanki of Radha Krishna.


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