how the Lord Krishna had made this Universe.

The Saint Vidur and Maharishi Matrai share each other a divine knowledge when the world God cover
all world at own lap  and own yog-maya.which attract all live life in the Earth,then this super power
thought remake a new art in life So the kindness Lord Shree Krishna regenerate a super humane and
he also regenerate some life who lead same activity to raise some humane but the world not expand
for humane life then The God Brahma pray to Shree Krishna,the God Brahma had divided in two
parts of male and female who help to expand this universe.

The fist man was Manu and the first women was Vaivasvata who had made first man and women in the World.the world expand continue time ti time when its is not completed a time.As we know only one power
thing whenever seen in the whole world.how much surprise we are take a birth and after some time
 we will leave the Earth after this Incident we are think that we are safe from death.

The Birth and death is two parts of life where all event of life in consist in these part and we are not agree
this truth caused by we are too weak  and always doing wastage try in life.Now this time we need know
a truth knowledge and always remember this super power which release this bound of life parts in the Earth. 




विदुर तथा महर्षि मैत्रेय से हुए उनके सत्संग का वृत्तांत......
मैत्रेयजी ने विदुर को बताया कि महाप्रलय के समय भगवान श्रीकृष्ण अपनी योगमाया को समेट कर सुषुप्त अवस्था में रहते हैं।
यद्यपि उस अवस्था में भी चैतन्य और पुन:रचना के लिए अवसर की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं।
भगवान देवों की प्रार्थना स्वीकार कर 23 तत्वों को संकलित करते हैं और फिर उसमें प्रविष्ट हो जाते हैं।

मैत्रेय मुनि विदुरजी को सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में बता रहे हैं।

उसके अनुसार भगवान सृष्टि की उत्पत्ति के लिए एक विराट पुरूष की रचना करते हैं।

विराट पुरूष प्राण, अपान, समान, और उदान, व्यान इन पांच वायु सहित नाग, कुर्म, कलकल, दह, धनंजय आदि तत्वों को प्रकट करता है।
अपने कठिन तप के कारण भगवान इन प्राणियों की जीविका के लिए इनकी मुख, जिव्हा, नासिका, त्वचा, नेत्र, कर्ण, लिंग, गुदा, हस्तुपाद, अनुभूति और चित्त और इनके विषय क्रमश: वाणी, स्वाद, ध्यान, स्पर्श, दर्शन, श्रवण, वीर्य, मल त्याग, कर्मशक्ति, चिंतन, अनुभूति चेतना और फिर इनके देवताअग्नि, वरूण, अश्विनी कुमार, आदित्य, पवन, प्रजापति इंद्र लोकेश्वर आदि को उत्पन्न करते हैं।

विदुरजी ने मैत्रेयजी से कुछ प्रश्न किए।

मैत्रेयजी ने उनसे कहा कि आपने जो प्रश्न पूछा है उनके उत्तर आगे आने वाली कथाओ में निहित है।

मैत्रेयजी कहते हैं अब सृष्टि का क्रम सुनिए विदुरजी।

ब्रह्माजी सर्वप्रथम तप, मोह आदि तामसिक वृत्तियों के उत्पन्न होने परखिन्न हो गए।
तब ब्रह्माजी ने विष्णुजी का ध्यान किया और दूसरी सृष्टि की रचना करने लगे।

उनमें सनकादि आदि वीतराग ऋषि उत्पन्न हुए।

ब्रह्माजी की भौंह से नील और लोहित वर्ण का एक बालक उत्पन्न हुआ।

वह अपने जन्म के साथ ही निवास स्थान और नाम के लिए रोने लगा।
उसके रूदन के कारण ही ब्रह्माजी ने उसका नाम रूद्र रख दिया।

उसको उन्होंने प्रजा उत्पन्न करने का आदेश दिया।
नील लोहित की जो संतती उत्पन्न हुई वह इतनी उग्र और भयंकर थी कि स्वयं ब्रह्माजी भयभीत रहने लगे।
नील लोहित वन में चला गया।
ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न हुए ऋषि नील लोहित के जाने पर ब्रह्माजी ने अपने दस अंगों से दस पुत्र उत्पन्न किए।

उनकी गोद से प्रजापति, अंगुष्ट से दक्ष, प्राण से वशिष्ठ, त्वचा से भृगु, हस्थ से ऋतु, नाभि से पुलक, कर्णों से पुलस्त्य मुख से अंगिरा, नेत्रों से अत्रि, मन से मरीची और इसके अतिरिक्त भी ब्रह्माजी के हृदय से काम, भोहों से क्रोध, अदरोष्ठ से लोभ, वाक से सरस्वती, लिंग से समुद्र, गुदा से निरूक्ति, छाया से कर्दम, दक्षिण स्तन से धर्म ओर वाम स्तन से अधर्म उत्पन्न हुए।

जब मरीची आदि से भी प्रजा ना बढ़ी तो ब्रह्माजी ने पुन: भगवान का स्मरण किया।

भगवान का ध्यान करते ही ब्रह्माजी के शरीर के दो भाग हो गए।
एक भाग पुरूष बना और दूसरा भाग स्त्री।
जो पुरूष बना वही स्वयंभू मनु और जो स्त्री बनीं वेशतरूपा नाम की रानी बनी।

मनु व शतरूपा से दो पुत्र व तीन कन्याएं उत्पन्न हुईं।
पुत्रों के नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद व कन्याओं के नाम हैं आकूति, देवहूति, और प्रसूति थे।

इन्हीं तीन कन्याओं का क्रमश: रूचि, कर्दम और दक्ष प्रजापति के साथ विवाह किया।

फिर इन तीन दंपत्तियों से ही आगे की समस्त सृष्टि का विस्तार हुआ।

जब हिरण्याक्ष को इस बात का ज्ञान हुआ तो उसने संपूर्ण पृथ्वी को पानी में छुपा दिया।
तब ब्रह्मा की नासिकाओं से वराह भगवान प्रकट हुए।

उन्होंने पृथ्वी को पानी से बाहर निकाला।

हिरण्याक्ष को मारा।
और पृथ्वी का शासन मनु के हाथों सौंपकर भगवान स्वधाम लौट गए। यद्यपि उस अवस्था में भी चैतन्य और पुन:रचना के लिए अवसर की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। भगवान देवों की प्रार्थना स्वीकार कर 23 तत्वों को संकलित करते हैं और फिर उसमें प्रविष्ट हो जाते हैं।मैत्रेय मुनि विदुरजी को सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में बता रहे हैं।उसके अनुसार भगवान सृष्टि की उत्पत्ति के लिए एक विराट पुरूष की रचना करते हैं। विराट पुरूष प्राण, अपान, समान, और उदान, व्यान इन पांच वायु सहित नाग, कुर्म, कलकल, दह, धनंजय आदि तत्वों को प्रकट करता है।>अपने कठिन तप के कारण भगवान इन प्राणियों की जीविका के लिए इनकी मुख, जिव्हा, नासिका, त्वचा, नेत्र, कर्ण, लिंग, गुदा, हस्तुपाद, अनुभूति और चित्त और इनके विषय क्रमश: वाणी, स्वाद, ध्यान, स्पर्श, दर्शन, श्रवण, वीर्य, मल त्याग, कर्मशक्ति, चिंतन, अनुभूति चेतना और फिर इनके देवताअग्नि, वरूण, अश्विनी कुमार, आदित्य, पवन, प्रजापति इंद्र लोकेश्वर आदि को उत्पन्न करते हैं।विदुरजी ने मैत्रेयजी से कुछ प्रश्न किए।मैत्रेयजी ने उनसे कहा कि आपने जो प्रश्न पूछा है उनके उत्तर आगे आने वाली कथाओ में निहित है।मैत्रेयजी कहते हैं अब सृष्टि का क्रम सुनिए विदुरजी।>ब्रह्माजी सर्वप्रथम तप, मोह आदि तामसिक वृत्तियों के उत्पन्न होने परखिन्न हो गए।तब ब्रह्माजी ने विष्णुजी का ध्यान किया और दूसरी सृष्टि की रचना करने लगे।उनमें सनकादि आदि वीतराग ऋषि उत्पन्न हुए।ब्रह्माजी की भौंह से नील और लोहित वर्ण का एक बालक उत्पन्न हुआ।>वह अपने जन्म के साथ ही निवास स्थान और नाम के लिए रोने लगा।उसके रूदन के कारण ही ब्रह्माजी ने उसका नाम रूद्र रख दिया।उसको उन्होंने प्रजा उत्पन्न करने का आदेश दिया।नील लोहित की जो संतती उत्पन्न हुई वह इतनी उग्र और भयंकर थी कि स्वयं ब्रह्माजी भयभीत रहने लगे।ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न हुए ऋषि नील लोहित के जाने पर ब्रह्माजी ने अपने दस अंगों से दस पुत्र उत्पन्न किए।उनकी गोद से प्रजापति, अंगुष्ट से दक्ष, प्राण से वशिष्ठ, त्वचा से भृगु, हस्थ से ऋतु, नाभि से पुलक, कर्णों से पुलस्त्य मुख से अंगिरा, नेत्रों से अत्रि, मन से मरीची और इसके अतिरिक्त भी ब्रह्माजी के हृदय से काम, भोहों से क्रोध, अदरोष्ठ से लोभ, वाक से सरस्वती, लिंग से समुद्र, गुदा से निरूक्ति, छाया से कर्दम, दक्षिण स्तन से धर्म ओर वाम स्तन से अधर्म उत्पन्न हुए।जब मरीची आदि से भी प्रजा ना बढ़ी तो ब्रह्माजी ने पुन: भगवान का स्मरण किया।भगवान का ध्यान करते ही ब्रह्माजी के शरीर के दो भाग हो गए।एक भाग पुरूष बना और दूसरा भाग स्त्री।मनु व शतरूपा से दो पुत्र व तीन कन्याएं उत्पन्न हुईं।>पुत्रों के नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद व कन्याओं के नाम हैं आकूति, देवहूति, और प्रसूति थे।इन्हीं तीन कन्याओं का क्रमश: रूचि, कर्दम और दक्ष प्रजापति के साथ विवाह किया।फिर इन तीन दंपत्तियों से ही आगे की समस्त सृष्टि का विस्तार हुआ।जब हिरण्याक्ष को इस बात का ज्ञान हुआ तो उसने संपूर्ण पृथ्वी को पानी में छुपा दिया।तब ब्रह्मा की नासिकाओं से वराह भगवान प्रकट हुए। उन्होंने पृथ्वी को पानी से बाहर निकाला।हिरण्याक्ष को मारा।और पृथ्वी का शासन मनु के हाथों सौंपकर भगवान स्वधाम लौट गए।

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